कल्ह
दिठो मूँ वण रोअनि प्या झंगलनि में।
घर
छदे, पाखी भजनि
प्या,
झंगलनि
में।
जिएँ
हल्यूँ कहरी कुहाड्यूँ, पाड़ खोट्रिण
दाँह
दई दरखत किरनि प्या, झंगलनि में।
धार
थी बेहोश टारिनि प्राण त्याग्या
पन
मुअल उदंदा वञनि प्या, झंगलनि में।
सिजु
बुदी व्यो दींह में, भटकी मुसाफिर
हालु
हैरत साँ दिसनि प्या, झंगलनि में।
हकु
असाँजो छो हज़म थ्यो, हाक़िमनि खाँ
चौपदा
रोई पुछनि प्या,
झंगलनि
में।
कंधु
भगो कुदरत जो जिनि कानूनु ट्रोड़े
से
शहर अजु था ट्रिड़नि प्या, झंगलनि में।
कींअ
हले माण्हुनि अग्याँ वसु, को हुननि जो
‘कल्पना’ जेके वसनि प्या, झंगलनि में।
-कल्पना रामानी
1 comment:
झंग अहमद पुर स्याल तो पाकिस्थान में है जहाँ हीर पैदा हुई थी वहां की भाषा सुराएकी है वही मेरा पैत्रक गाव है पर आपकी सिन्धी भाषा अलग है
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