रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Friday, 19 August 2016

हू साथी घुरिजे


चित्र से काव्य तक
मूँखे हर-पलि प्यारु करे, हू साथी घुरिजे।
मुहिंजी हिक-हिक गाल्हि मञे, हू साथी घुरिजे।

माँ न निभाए सघंदसि हुन जे वदे कुटुंब साँ
दे कुटुंबु मूँ साणु रहे, हू साथी घुरिजे।

नंढा-वदा कम रधिणु-पचाइणु माँ छा जाणा 
हिकु नौकरु दींह-राति रखे, हू साथी घुरिजे।

करे न सघंदसि माँ त गुलामी, साफ़ु चवाँ थी 
लेकिन मूहिंजे अग्याँ झुके, हू साथी घुरिजे।  

कावड़ि कयाँ अगर माँ,हिं बि रहे मुरकंदो
मूँखे कौड़ा बोल न दे, हू साथी घुरिजे।

उथे-विहे या घुमे-सुम्हें, मुहिंजी मर्ज़ीअ साँ
हिं न काई गाल्हि कटे, हू साथी घुरिजे।

जेको शर्तूँ मञे कल्पना स्वागतु हुन जो
पर न पाण का शर्त रखे, हू साथी घुरिजे।


-कल्पना रामानी

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