रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Sunday 18 September 2016

मोट्यो मींहु अबाणे



मोट्यो मींहु अबाणे, जल जा भरे भँडारा
समुँड्र-नंदियूँ प्या ट्रिड़नि निहारे पूर किनारा

प्यास मिटाए प्राणिनि जी, धरतीअ खे धोई
आसमान जो अङणु छदे व्या बादल कारा

सरहा थ्या सभु खेत, बिजनि जूँ लगियूँ कतारूँ
हारियल हारिनि जी किस्मत जा चमक्या तारा

बण्या सुकल बन सावा, वणु-वणु भरियो पननि साँ
वरी  वरिया  वापस  पहिंजे  घरि  पंछी  प्यारा 

वाका करे लथा झरणा जबलनि जी हँज माँ
नेणनि नूरु वध्यो कुदरत जा दिसी नज़ारा

हुजे कल्पना सदिनि सँदी सरही शल धरती
हिं मिठे पाणीअ जा खूह न बणिजनि खारा 


-कल्पना रामानी

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